हरिद्वार के इस मंदिर में स्वयं विराजमान हैं भगवान विष्णु , जिसके दिल में वास करती हैं माँ लक्ष्मी।

शास्त्रों के अनुसार हिन्दू धर्म में श्राद्ध करने का बहुत अधिक महत्व है और ये महत्व तब और बढ़ जाता है जब साल में एक बार आता है पितृ पक्ष। ऐसी मानयता है की पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान ,तर्पण और पूजा करने से पितृ देव खुश होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है,

वैसे तो पितृ पक्ष में किसी भी धार्मिक स्थल पर श्राद्ध किया जा सकता है, लेकिन कुछ स्थान इसके लिए विशेष माने गए हैं. उन्हीं में से एक है हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर ।
पितृ पक्ष में 15 दिनों तक पितृ देव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं, कहा जाता है कि जो इस पक्ष में पितरों को भूल जातें है या फिर उनके अंतिम कर्म विधि-विधान से पूरे नहीं करतें उनसे पितर देव रूठ जाते हैं, ऐसे  रूठे पितरों को मानने के लिए धरती पर तीन प्रमुख स्थान बताए गए हैं. जिसमे पहला बदरीनाथ धाम, दूसरा हरिद्वार में नारायणी शिला और तीसरा स्थान है बिहार में गया जी.

मान्यता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला पर पितरों का तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, यही कारण है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के लिए यहां देशभर के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहाँ उमड़ती है।  

देश ही नहीं विदेश से भी लोग यहां अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाने आते हैं. पुराणों के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में आतें है, तब श्राद्ध पक्ष शुरू होते है। यह ग्रह योग आश्विन कृष्ण पक्ष में बनता है ।

मान्यता के अनुसार हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला में भगवान श्री नारायण हरी की कंठ से नाभि तक का हिस्सा है ,भगवान के चरण गयाजी में , और ऊपर का हिस्सा ब्रह्म कपाली के रूप में बदरीनाथ में पूजा जाता है और श्रीहरि का कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के रूप में पूजा जाता है।  

स्कंद पुराण के अनुसार गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा श्री बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा. उनके हृदय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे. नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई.स्कंद पुराण के केदार खंड के अनुसार, हरिद्वार में नारायण का साक्षात हृदय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है. क्योंकि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती है. इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है । 

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